सुहानी भोर


थी सागर तट की सुहानी भोर ;सुनाई दे रहा था लहरों का शोर


कहीं थी चांदी कहीं था सोना ,धरा था जल ने रूप सलोना ;


गुनगुनाते मांझी खींचे जा रहे थे डोर ,देख कर मै हुई विभोर ;


लग रहा था सूरज नभ का दिठौना,छोड़ा था पंछियों नेअपना बिछौना
थिरक रहीं थीँ मछलियाँ चहुँ ओर ,ज़्युँ नाचे जंगल में मोर ;

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