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और बरसा पानी

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रुई के फाहे से बादलजब नीले नभ पर छाये ; किसान ने अपनी पलकों पर सुंदर सपने सजाये ; जोता खेत लग कर उसने पूरी की मशक्कत ; बोये बीज धरा पर उसने कि गया वो थक ; कड़ी धूप में खड़े रहकर की उसने मेहनत; था पूरा परिश्रमी इसमें नहीं कोई शक; कहीं से आया मेघ का टुकड़ाऔर झमाझम बरसा पानी ; साकार हुआ सपना उसका उग आयी फसल धानी; हरी हरी फसल देखकर हुआ प्रफुल्लित किसान ; पड़गयी उसके सूखे अस्थिपंजर में जान ; धन्यवाद किया प्रभु का कहा "तू है कितना महान" जो तुने इस गरीब पर भी दिया ध्यान ; नैनों में उसके ख़ुशी के आंसू भर आये ; अपने सूखे होठों से फिर उसने प्रभु के गीत गाये;

उड़ान

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उड़ान; चलों उड़ चलें श्यामल बादलों के पार ; पंछियों की तरह नन्हे पंख पसार , उड़ेंगे हिम के पर्वतों पे ,नीले गगन में , खुली हवा में उड़कर पहुंचेंगे चमन में ; निहारेंगे नभ से धरा का संसार , पंछियों की तरह नन्हे पंख पसार; चुगेंगे मोतियों से दाने हरे -हरे खेतों से , झूलेंगे हम डालियों पे बड़े -बड़े पेड़ों पे , देखेंगे निकट की चमन की बहार ; पंछियों की तरह नन्हे पंख पसार , चलो उड़ चलें श्यामल बादलों के पार ; देखेंगे गगन से नीला नदिया का पानी , तैरती बत्तख उसमें और मछली रानी , आएंगे सूरज ढले ,नदिया के पार , जैसेआये पंछी शाम को थक हार ; चलो उड़ चलें श्यामल बादलों के पार ; पंछियों की तरह नन्हे पंख पसार;

एहसास

एहसास- कभी होता है एहसास की रह गयी हूँ अकेली ; फिर सोचती हूँ की इंसान आता है अकेला और जाता है तनहा ; बनते रहतेंहैं रिश्ते जिनमे छूटते रहते हैं के बनते रहते हैं नए भी ; अंत में रह जाती हैं कुछ यादें जो अलग एहसास छोड़ जातींहैं ; जीवन तो एक सफ़र है एक मौका कुदरत का, जिनमे इन रिश्तों के साथ जीना है एक सार्थक ज़िन्दगी , जो जाते समय दे एक सुकून की सही तरह जी पाए ये ज़िन्दगी ; कर पाए अपने फ़र्ज़ पूरे सभी और दे पाए जहाँ को कुछ ऐसा जिसने , दिया मेरे अपनों को एक गर्व का एहसास;

कहाँ से तू आया

कहाँ से तू आया ; कहाँ से तू आया प्राणी?कहाँ पे तू जायेगा ? इस भेद को ओ मानुष न तू जान पायेगा , हाथ में है तेरा जीवन इसे संवार ले रे बन्दे ; बंद कर दे तू अपने बुरे गोरख -धंधे ; जो न कहा तूने माना तो तू पछतायेगा ; फिर किस तरह से तू आत्म तुष्टि पायेगा ? कहाँ से तू आया प्राणी ?कहाँ पे तू जायेगा ? इस भेद को ओं मानुष न तू जान पायेगा ; हर जीव में जो देखे प्रभु के रूप को तू बन्दे । कोई असर नहीं करेंगे मोहमाया के फंदे , "गीता के सन्देश "को तू जो अपनाएगा , फिर तो इस भवसागर से पार उतर जायेगा ; कहाँ से तू आया प्राणी ?कहाँ पे तू जाएगा ? इस भेद को ओ मानुष न तू जान पायेगा; राजश्री '

भैय्या राजा

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भैय्या राजा; हज़ारों में एक है मेरा भैय्या राजा, बांटा है उसके साथ सुख -दुःख साझा; अपनी जान लुटाता है, जब भी याद करती हूँ, मुझसे मिलने आता है, राखी ,टीके की लाज वो निभाता है, है बहोत भोला वो मेरे मन को भाता है; क्रिकेट का शौक़ीन है मेरे भैय्या राजा, बांटा है उसके साथ अपना सुख -दुःख साझा; खुदा करे लम्बी उम्र हो उसकी, अपने अरमान पूरे करे वो सदा, प्यार बना रहे हम भाई -बहनों में, यही ईश्वरसे करती हूँ दुआ; बहुत ही ज़हीन है मेरा भैय्या राजा, बांटा है उसके साथ सुख -दुःख साझा;

माँ का आँचल

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माँ का आँचल; कैसे करें उस माँ की ममता का बखान, कैसे बताएं कि वो कितनी थीं महान; तिनके बटोर सिखाया बनाना संसार, बचपन में दिए हमें संस्कार, सिखाया हमे जोड़ना परिवार, किस तरह मनकों से बनता है सुंदर हार; सिखाया करना गुज़ारा गर नहीं हो बहुत,हो थोडा ; जाये कैसे परिवार के रिश्तेसंबंधों को जोड़ा ; जीवन के मूल्यों को दिया ऊँचा स्थान, सिखाया बुजुर्गों को देना सम्मान; तपती धूप में दिया अपना आँचल पसार, उनकी नज़रों में थे सबके लिए आशीष बेशुमार, थपकियाँ देके सुलाया जब हमे था बुखार, याद आता है उनका स्नेह भरा स्पर्श बार बार; किस तरह बचाया जब था आंधी तूफ़ान, किस तरह बताएं कि वो कितनी थीं महान;

प्रभु का नाम

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प्रभू का नाम करना है जीवन नैय्या का उद्धार, प्रभू का नाम ही है जिससे होगा बेडा पार ; गीता महाभारत ही हैं पथप्रदर्शक, जिनके उपदेशों से होगा जीवन सार्थक; दिखायेंगे ये रोशनी अज्ञानता के अँधेरे में, सुझायेंगे राह संबंधों के अजब घेरों में; जिससे कर सकें अपने कर्तव्य पूरे सभी, कभी बहके कदम तो थाम लेंगे इनका दामन तभी; अपनी संतानों को भी थमा सकें ये मशाल, जो रखे उन्हें हर हाल में खुशहाल; गुज़ार सकें वे जिंदगानी जो दे उन्हें रूहानी सुकून ; कर सकें वे रहनुमाई अपने नौनिहालों की भी , सोचें जो सभी एक बार, कायम रख सकें हम अपने संस्कार; होगा ये विश्व "वासुदेव कुटुम्बकम" तभी, ख़ुशी ख़ुशी जी पाएंगे ये जिंदगानी सभी; ~ राजश्री

मेरे पिता

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मेरे पिता हाथ पकड़ जिन्होंने नाम लिखना सिखाया, तोतली जुबां को सही बोलना सिखाया; कभी खिलाया, कभी बहलाया और कभी हँसाया, उंगलियाँ थाम हमें सड़क पार करना सिखाया; ऐसे थे मेरे पिता हँसते थे सदा, खुश रखते थे हम भाई बहनों को सर्वदा; प्रतीक बने एक संघर्ष शील व्यक्ति का, मुसीबतों में भी जो मुस्कुराता रहा, धूप छांव भरे इस जीवन में परेशानियों में हमें ढाढस बंधाता रहा; नींद आने पर अपनी बाहों के झूले में झुलाया, भूखे होने पर अपने हाथों से निवाला खिलाया; परीक्षा के समय साथ बैठ प्रश्नों का उत्तर समझाया, जब भी जरूरत हुई उन्हें अपने इर्द गिर्द ही पाया; स्नेह भरा उनका हाथ अपने सिरपर महसूस होता है सर्वदा, ऐसे पिता को याद करता है मेरा मन सदा;

एक रोमांटिक शाम

एक रोमांटिक शाम हम और तुम और ये समाँ; प्यार जगा जगा सा है; बोलीये न बोलीये, सब कहा कहा सा है, पास में है बाग़ सा, जहां खिले हैं चंदफूल, देखिये न देखिये यहां खिला, खिला सा है; हम चलेंगे राह पर, डूबेंगे और प्यार में, इस सुहानी शाम में, रोमांस भरा - भरा सा है, चाँद है शबाब पर, छिटकी है चाँदनी, चाँदनी में देखिये, सब धुला - धुला सा है।

लोधी गार्डेन

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लोधी गार्डेन, रंग रंग के फूल यहाँ पर, भांति भांति के लोग, कोई लगाये दौड़ यहाँ पर, कोई करे है योग; कहीं कर रहा कोई कसरत, कोई चुग रहा दाना, कोई चाय के घूँट भर रहा, कोई खा रहा खाना; प्रवचन कोई सुना रहा, कोई गा रहा गाना; किसी को ठहाके लगाकर है अपना स्वास्थ्य बनाना; बच्चों को लेकर आया है तरह तरह के खेल खिलाने; सिर्फ चक्कर लगाने आया कोई, किसीको हैं संपर्क बढ़ाने; पढ़ रहा अख़बार किसीको हैं गप्पे लड़ाने; बेच रहा दवाएं कोई, कोई आया रोमांस लड़ाने; पहन ट्रैकसूटआया कोई, किसी ने पहनी साड़ी रंगीली, किसी को भली लगे है पेंट पर कुर्ती चमकीली; सुबह की रौनक देख यहाँ की चकित हो गयी आंख हमारी; लोधी गार्डेन कहते हैं इसको ये है हमारी ज़न्नत न्यारी; राजश्री

हमारा संकल्प

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हमारा संकल्प हरी भरी धरती ने देखो मोह लिया मन मेरा, नृत्य मयूर का देख मुग्ध हुआ मन मेरा, खिलते फूल नाचते भँवरे लुभा गए मुझको, बहते झरने, कूकती कोयल गुदगुदा गए मुझको । देख बादलों से भरा ये गगन, झूम झूम गया मेरा मन, देख तैरती चंचल मछलियाँ जल में, कुछ ऐसा ख़याल आया मेरे मन में, जिस दिलेरी से सृष्टि ने बिखेरी ये सम्पदा धरा पर, उसी क्रूरता से नष्ट किया हमने उसे यहाँ पर, काट वृक्षों को दिए हैं हमने ज़ख्म, पौली बैग से घुट रहा इसका दम। आओ उऋण हो जाएँ सृष्टि के वरदानों से, फिर से संवारे इसे साथमिल किसानों के, फिर धरती दुल्हन सी संवर जाएगी , हर ओर इसकी मुस्काती छवि नज़र आयेगी।

सृजन

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सृजन : बिखरे हैं कुछ बीज धरा पर, कुछ पड़ेगी धूप, मेघों से बरसेगा जल, सृजन होगा एक पौधे का और आयेगी बहार। खिलेंगे फूल जब उस पर, खिलखिलाएगी हंसी सृष्टि के लबों पर , प्रफुल्लित होगा संसार। यूँ ही जब जन्म हुआ एक जिंदगी का, खिलखिलाई हंसी लबों पर जननी के, भरा जीवन के मूल्यों को उसमें , जिससे हुआ मानवता का उद्धार ;