संदेश

मार्च, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रज्ञा आई

चित्र
चढ़ा घोड़े पे अंकित और बजी शहनाई ,पहन कर चुनरी हौले से प्रज्ञा आई ; मुदित हुए सब घर में रोशनी सी छाई ,पड़े शुभ कदम घर में लक्ष्मी आई ; है सबका आशीष खुश रहें वे सदा ,उठाएं ज़िन्दगी का पूरा मज़ा ; खुशियाँ लें उनके आँगन में अंगडाई ,आसमान की छूएं वो ऊंचाई; उतरे खरे कसौटी पे एक दुसरे की वो सदा ,खुदा पूरी करे उनकी हर रज़ा; भक्ति पार्क में चांदनी सी छाई ,जहाँ उन्होंने दुनिया है बसाई ;

सुहानी भोर

चित्र
थी सागर तट की सुहानी भोर ;सुनाई दे रहा था लहरों का शोर कहीं थी चांदी कहीं था सोना ,धरा था जल ने रूप सलोना ; गुनगुनाते मांझी खींचे जा रहे थे डोर ,देख कर मै हुई विभोर ; लग रहा था सूरज नभ का दिठौना,छोड़ा था पंछियों नेअपना बिछौना थिरक रहीं थीँ मछलियाँ चहुँ ओर ,ज़्युँ नाचे जंगल में मोर ;