मेरे पिता




मेरे पिता


हाथ पकड़ जिन्होंने नाम लिखना सिखाया,


तोतली जुबां को सही बोलना सिखाया;


कभी खिलाया, कभी बहलाया और कभी हँसाया,


उंगलियाँ थाम हमें सड़क पार करना सिखाया;


ऐसे थे मेरे पिता हँसते थे सदा,


खुश रखते थे हम भाई बहनों को सर्वदा;


प्रतीक बने एक संघर्ष शील व्यक्ति का,


मुसीबतों में भी जो मुस्कुराता रहा,


धूप छांव भरे इस जीवन में परेशानियों में हमें ढाढस बंधाता रहा;


नींद आने पर अपनी बाहों के झूले में झुलाया,


भूखे होने पर अपने हाथों से निवाला खिलाया;


परीक्षा के समय साथ बैठ प्रश्नों का उत्तर समझाया,


जब भी जरूरत हुई उन्हें अपने इर्द गिर्द ही पाया;


स्नेह भरा उनका हाथ अपने सिरपर महसूस होता है सर्वदा,


ऐसे पिता को याद करता है मेरा मन सदा;

टिप्पणियाँ

Ankit ने कहा…
Very well written and touching

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