हमारा संकल्प
हमारा संकल्प
हरी भरी धरती ने देखो मोह लिया मन मेरा,
नृत्य मयूर का देख मुग्ध हुआ मन मेरा,
खिलते फूल नाचते भँवरे लुभा गए मुझको,
बहते झरने, कूकती कोयल गुदगुदा गए मुझको ।
देख बादलों से भरा ये गगन,
झूम झूम गया मेरा मन,
देख तैरती चंचल मछलियाँ जल में,
कुछ ऐसा ख़याल आया मेरे मन में,
जिस दिलेरी से सृष्टि ने बिखेरी ये सम्पदा धरा पर,
उसी क्रूरता से नष्ट किया हमने उसे यहाँ पर,
काट वृक्षों को दिए हैं हमने ज़ख्म,
पौली बैग से घुट रहा इसका दम।
आओ उऋण हो जाएँ सृष्टि के वरदानों से,
फिर से संवारे इसे साथमिल किसानों के,
फिर धरती दुल्हन सी संवर जाएगी ,
हर ओर इसकी मुस्काती छवि नज़र आयेगी।
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