सृजन
सृजन :
बिखरे हैं कुछ बीज धरा पर, कुछ पड़ेगी धूप,
मेघों से बरसेगा जल, सृजन होगा एक पौधे का
और आयेगी बहार।
खिलेंगे फूल जब उस पर,
खिलखिलाएगी हंसी सृष्टि के लबों पर ,
प्रफुल्लित होगा संसार।
यूँ ही जब जन्म हुआ एक जिंदगी का,
खिलखिलाई हंसी लबों पर जननी के,
भरा जीवन के मूल्यों को उसमें ,
जिससे हुआ मानवता का उद्धार ;
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