एहसास
एहसास- कभी होता है एहसास की रह गयी हूँ अकेली ;
फिर सोचती हूँ की इंसान आता है अकेला और जाता है तनहा ;
बनते रहतेंहैं रिश्ते जिनमे छूटते रहते हैं के बनते रहते हैं नए भी ;
अंत में रह जाती हैं कुछ यादें जो अलग एहसास छोड़ जातींहैं ;
जीवन तो एक सफ़र है एक मौका कुदरत का,
जिनमे इन रिश्तों के साथ जीना है एक सार्थक ज़िन्दगी ,
जो जाते समय दे एक सुकून की सही तरह जी पाए ये ज़िन्दगी ;
कर पाए अपने फ़र्ज़ पूरे सभी और दे पाए जहाँ को कुछ ऐसा जिसने ,
दिया मेरे अपनों को एक गर्व का एहसास;
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