मेरे पिता हाथ पकड़ जिन्होंने नाम लिखना सिखाया, तोतली जुबां को सही बोलना सिखाया; कभी खिलाया, कभी बहलाया और कभी हँसाया, उंगलियाँ थाम हमें सड़क पार करना सिखाया; ऐसे थे मेरे पिता हँसते थे सदा, खुश रखते थे हम भाई बहनों को सर्वदा; प्रतीक बने एक संघर्ष शील व्यक्ति का, मुसीबतों में भी जो मुस्कुराता रहा, धूप छांव भरे इस जीवन में परेशानियों में हमें ढाढस बंधाता रहा; नींद आने पर अपनी बाहों के झूले में झुलाया, भूखे होने पर अपने हाथों से निवाला खिलाया; परीक्षा के समय साथ बैठ प्रश्नों का उत्तर समझाया, जब भी जरूरत हुई उन्हें अपने इर्द गिर्द ही पाया; स्नेह भरा उनका हाथ अपने सिरपर महसूस होता है सर्वदा, ऐसे पिता को याद करता है मेरा मन सदा;
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