और बरसा पानी


रुईके फाहे से बादलजब नीले नभ पर छाये ;
किसान ने अपनी पलकों पर सुंदर सपने सजाये ;

जोता खेत लग कर उसने पूरी की मशक्कत ;
बोये बीज धरा पर उसने कि गया वो थक ;
कड़ी धूप में खड़े रहकर की उसने मेहनत;
था पूरा परिश्रमी इसमें नहीं कोई शक;
कहीं से आया मेघ का टुकड़ाऔर झमाझम बरसा पानी ;
साकार हुआ सपना उसका उग आयी फसल धानी;


हरी हरी फसल देखकर हुआ प्रफुल्लित किसान ;

पड़गयी उसके सूखे अस्थिपंजर में जान ;

धन्यवाद किया प्रभु का कहा "तू है कितना महान"

जो तुने इस गरीब पर भी दिया ध्यान ;

नैनों में उसके ख़ुशी के आंसू भर आये ;

अपने सूखे होठों से फिर उसने प्रभु के गीत गाये;

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