महबूब का प्यार
बड़ी मुद्दतसे था जिसका इंतज़ार आ गई वो घड़ी जब मुझे मिला मेरे महबूब का प्यार;
हासिल करना था उन्हे बहुत दुश्वार लगता था मेरे दामन में हैं खार ही खार;
जब भी देखती उन्हें नज़रें वो फेर लेते थे चलते -चलते अपने रस्ते का रुख मोड़ लेते थे;
ज़बां उनका नाम भी लेती तो वे दास्ताँ किसी और की छेड़ देते थे;
थक गई थी की कभी न मिलेगी उनसे तवज्जोह,
मान लिया था की छोड़ना पड़ेगा ये सम्मोह;
न जाने क्या हुआ अचानक मेरे में जीवन कहाँ से बदली छाई;
जो निगाह में उनकी मोह्हब्बत मेरी रंग लाई;
हुआ मेरी आशिकी का उनपे असर,
उनके दिल में मैंने भी जगह पाई;

~ राजश्री २०/०८/२००८

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