सच्ची दिवाली
कैसी ये दिवाली है ?
जल रहा है देश, लगती है दिल को ठेस,
आरती उतारी जा रही रावणों की,
जबकि दीवाली तो थी बुराई पर अच्छाई की विजय,
आज लगता है बुराई का बोलबाला है,
हे राम !ये क्या गड़बड़ घोटाला है ?
क्यों नही दिया जाता वनवास ऐसे रावणों को?
जो मनाते हैं दीवाली बसों को जलाकर,
जलाते हैं पटाखे लोगों के बीच फर्क लाकर,
खाते हैं मिठाई लोगों के मुहं से रोटी छीनकर;
काश, हम ही चलें उस राम की राहपर जिससे हो देश का भला,
दूर हो जाए लोगों के बीच ये फासला;
आओ मनाएँ ऐसी दीवाली जो मिटा दे दूरियां सभी,
भाई भाई की तरह रहें और कहलायें "भारतीय" सभी,
मानेगी इस देश की असली दीवाली तभी.

राजश्री २४/१०/२००८

टिप्पणियाँ

Ankit ने कहा…
very good poems .. you should write more often

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